Natasha

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डार्क हॉर्स

" अरे रख लो केतना भारी है, खाना-पीना। फेर कब आओगे, छः महीना कि सालभर पर?" उधर दुकानदार पेड़े पैक कर रहा था, "अरे भइया, जरा ताजा वाला देना। "विनायक बाबू दुकानदार से बोले उधर संतोष ने आगे बढ़कर पेड़े लिए इधर विनायक बाबू ने झट से लपककर बगल वाली गुमटी से एक खिल्ली पान ले ली। इस देश में अगर बेटे का जनरा दही-चीनी से बनता है तो बाप का जतरा पान से बनता है। विनायक बाबू ने फिर दुकानदार को पैसा थमाया और बाइक स्टार्ट कर दोनों निकल गए।

स्टेशन पहुँचते सवा दस बज चुके थे। बार-बार हो रही उदघोषणा से पता चल रहा था कि ट्रेन प्लेटफॉर्म पर लग चुकी है। साढ़े दस में ट्रेन के खुलने का समय था। बाइक से झट उतर संतोष ने पीछे बंधे बड़े वाले बैग की रस्सी खोली, विनायक बाबू झोला लेकर आगे बढ़े, तब तक लगभग ऊँचे स्वर में संतोष ने कहा, "पापा प्लेटफॉर्म टिकट ले लीजिए" विनायक बाबू पहले तो अनसुने ढंग से आगे बढ़े फिर एक क्षण रुककर प्लेटफॉर्म टिकट काउंटर की तरफ चले गए। अपने बेटे के अंदर एक सजग और कर्तव्यनिष्ठ नागरिक के गुण को देखकर वे मन-ही-मन पुरसन्न थे और बस इसी की लाज रखने प्लेटफॉर्म टिकट की लाइन में खड़े हो गए थे। नहीं तो यह पहली ही बार था जब भागलपुर रेलवे स्टेशन के अंदर जाने के लिए वे प्लेटफॉर्म टिकट ले रहे थे। वह तो घर का स्टेशन था। हमेशा का आना-जाना था। यहाँ टिकट लेकर वे खुद की नजर में कतई गिरना नहीं चाहते थे।

प्लेटफॉर्म नंबर एक पर विकरमशिला खड़ी थी। दोनों प्लेटफॉर्म पर पहुँच गए। संतोष ने जेब से टिकट निकाला और देखते हुए बोला, "एस-3 में है 13 न. मिडिल वर्ष दिया है।" सिविल की तैयारी करने वाले लड़के को जब भी कोई पिता स्टेशन छोड़ने जाता तो मानिए वह पीएसएलवी छोड़ने गया हो। खुशी, उत्साह, डर, संदेह, संभावना सब तरह के भाव चेहरे पर एक साथ दिखते हैं। विनायक जी तुरंत हरकत में आ गए थे। झटपट झटपट चलते हुए एस-3 तक पहुँच गए, बोगी में बढ़े और तेरह न. सीट के नीचे जाकर झोला सरका दिया। तब तक पीछे-पीछे संतोष भी बैग लटकाए आ गया। विनायक बाबू ने लंबी साँस छोड़ते हुए कहा, "चलो सामान एडजस्ट हो गया। आराम से जाना। बिना किसी लाग लपेट में पड़े एकदम लक्ष्य बनाके पढ़ो। कामभर जितना खर्चा हो, निकाल लेना एटीएम तुमको दे ही दिए हैं। पूरा समाज का नजर है। सबको दिखाना है कुछ करके हम पैसा देने में कमी नहीं करेंगे, तुम्हारा काम मेहनत है, इसमें कमी नहीं करना" असल में एक सिविल अभ्यर्थी बेटे और बाप के बीच रिश्ते का आधार इन्हीं दो परम सत्य के आस-पास मंडराता है। पिता पैसे को लेकर निश्चिंत करता है और बेटा परिणाम को लेकर बेटे को खर्च चाहिए और पिता को परिणाम ।

ट्रेन खुलने का समय हो गया। संतोष ने पिता के पाँव छुए, पीठ पर एक जोरदार धील वाला आशीर्वाद देते हुए विनायक बाबू बोगी से बाहर की ओर निकलते हुए बोले, "चलो, जय गणेश पहुँच के फोन कर देना। ""

हिंदी पट्टी के क्षेत्र में कोई पिता तब तक बेटे को गले नहीं लगाता जब तक कि वह खुद से कमाने-खाने न लगे। ट्रेन की सीटी बजी। रेलगाड़ी धीरे-धीरे प्लेटफॉर्म से सरकने लगी विनायक बाबू बाहर आ बाइक स्टार्ट कर निकल गए।

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